जाने हरतालिका तीज की कहानी, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि एवं उपाए।
हरतालिका तीज की तिथि, समय और दिन हिंदी में निम्नलिखित हैं:
तिथि: हरतालिका तीज अगस्त मास की शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाई जाती है।
समय: हरतालिका तीज का पालन सुबह से शुरू किया जाता है और शाम तक चलता है। विशेषतः, महिलाएं सुबह स्नान के बाद अपने द्वार या विशेष स्थान पर व्रत रखती हैं और पूजा करती हैं।
दिन: हरतालिका तीज वार्षिक रूप से अगस्त महीने के 3 दिन, यानी कि शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है।

हरतालिका तीज की कहानी
पुराने समय की बात है, एक ब्राह्मण राजा नगर में राज करता था। उनकी पत्नी ने देवी पार्वती की कठिन व्रत कथा सुनी थी और उन्हें प्रेम के साथ भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने की इच्छा थी। ध्यान और साधना के माध्यम से, वह अपने इष्ट देवता को प्राप्त कर सकती थीं, लेकिन यह अनुभव उनके पति को नहीं मिल सकता था।
पति के सुख और सुख के लिए, रानी ने तय किया कि वह एक उपाय ढूंढेंगी जो उन्हें उनके पति के लिए प्रेमी बनाने में मदद कर सकेगा। वह अपने दोस्त मेवा की रानी के पास गईं और उनसे अपनी परेशानी साझा की। मेवा की रानी ने उसे सलाह दी कि वह प्रकृति के सम्पर्क में जाए और वहां हरियाली के पेड़-पौधों को लेकर एक पूजा करें।
रानी ने मेवा की रानी की सलाह स्वीकार की और एक अद्भुत व्रत का आयोजन किया। इस दिन, उन्होंने अपने आप को प्रकृति के अंग बना लिया और वृक्षों के नीचे बैठीं। उन्होंने एक छोटे तालाब के पास बैठकर शिवलिंग की पूजा की और मन्त्रों का जाप किया। रानी की तपस्या और आदर्शता ने भगवान शिव को प्रसन्न किया और उन्हें उनके पति के रूप में प्राप्त करने का वरदान दिया।
यह दिन हरतालिका तीज के रूप में मनाया जाता है। हर साल इस दिन, सभी स्त्रियाँ इस व्रत को मान्यता के साथ मनाती हैं। इस दिन, स्त्रियाँ अपने पति के लंबे जीवन और खुशहाली की कामना करती हैं और भगवान शिव और पार्वती की पूजा करती हैं। यह व्रत सावन महीने के शुक्ल पक्ष की त्रितीया को मनाया जाता है।
इस प्रकार, हरतालिका तीज का आयोजन हर साल मनाया जाता है और स्त्रियाँ इसे प्रेम, सौभाग्य, और पति की लंबी उम्र के लिए व्रत लेती हैं। यह परंपरा एक दृढ़ विश्वास का प्रतीक है और स्त्री शक्ति की महत्त्वपूर्ण भूमिका को प्रकट करती है।
पूजा सामग्री की तैयारी:
मंगलमय स्त्री अथवा दिव्य सुंदर सुंदरी की छवि की तैयारी करें।
पूजा के लिए पूजा सामग्री की तैयारी करें, जिसमें मंगलमय धागा, अष्टद्रव्य (सिन्दूर, कजल, अट्टा, हल्दी, चावल, कपूर, अदरक, तांबा), पूजा थाली, दीपक, धूप, अगरबत्ती, सुगंध, फूल, पान, नारियल, स्थूल व उक्का मूर्तियाँ, लट्टू, चौराहा, धागा, कौड़ी आदि शामिल हो सकते हैं।
पूजा की विधि:
पूजा को घर के मंदिर में या इच्छित स्थान पर करें।
पूजा आरंभ करने से पहले नित्य पूजा और स्नान करें।
पूजा स्थल को शुद्ध करने के लिए गंगाजल से स्थल की सभी वस्तुओं को स्पृशित करें।
अपनी इच्छा के अनुसार पूजा सामग्री का एक गड्ढा बनाएँ और उसे अपनी आँखों से छिड़कें। इसे अपने सिर पर रखें और धागा बांधें।
पूजा के बाद मंदिर में या इच्छित स्थान पर व्रत रखें।
व्रत का खाना:
व्रत में दाल, अनाज, सब्जियां, फल, दूध, दही, घी, शहद आदि निषिद्ध होते हैं।
खाने में सिर्फ फल, साबुत चावल, साबुत गेहूँ, साबुत उड़द दाल, साबुत मूंग दाल, साबुत मसूर दाल, साबुत छोले, साबुत काला चना आदि सम्पूर्ण अनाज ही संग्रहित किए जा सकते हैं।
यह थी हरतालिका तीन पूजा की विधि हिंदी में। ध्यान दें कि इन विधियों को अपनी परंपरा, संस्कृति और अपनी आवश्यकताओं के अनुसार अनुकरण करें।