Jagannath Puri Yatra :क्यों हर साल निकाली जाती है यात्रा, क्या है महत्व, क्यू 14 दिन रहते हैं बीमार!

Jagannath Puri Yatra :जगन्नाथ यात्रा, जिसे रथ यात्रा भी कहा जाता है, हिंदू धर्म के एक प्रमुख त्योहार है जो भारत के उडीसा राज्य के पुरी नगर में मनाया जाता है। यह यात्रा वार्षिक रूप से अषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को होती है, जो आमतौर पर जुलाई या अगस्त के माध्यम से शुरू होती है।
जगन्नाथ यात्रा का मुख्य उद्देश्य है भगवान जगन्नाथ, बालभद्र और सुभद्रा को उनके मंदिर से जगन्नाथ रथ या चरियोत से गुंडीचा मंदिर तक ले जाना है। यह यात्रा उडीसा के अनुसार भगवान जगन्नाथ को उनकी नींव से उठाकर सांसारिक जीवन में उनके भक्तों के समीप ले जाती है।
इस यात्रा में तीन रथ होते हैं - जगन्नाथ रथ, बालभद्र रथ और सुभद्रा रथ। इन रथों को भक्तजनों के द्वारा खींचकर पुरी नगर में स्थापित गुंडीचा मंदिर तक पहुंचाया जाता है। यह यात्रा भारतीय धर्म में भक्ति और भगवान के साथीकरण का एक महत्वपूर्ण प्रतीक मानी जाती है।
जगन्नाथ यात्रा को बड़ी धूमधाम और धार्मिक उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस यात्रा में लाखों भक्तजन भाग लेते हैं और इसकी दर्शनीयता को लेकर भक्तों के द्वारा बड़ी भीड़ आती है। इस त्योहार के दौरान प्रकाश पथ, सुंदर सजावट और धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
इस प्रकार, जगन्नाथ यात्रा को सार्वजनिक रूप से उद्घाटित किया जाता है और यह भगवान जगन्नाथ की महत्वपूर्ण परंपरा में से एक है जो लोगों के धार्मिक और सामाजिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

Jagannath Yatra 2023:जगन्नाथ यात्रा का महत्व हिंदू धर्म और भक्ति के संदर्भ में बहुत ऊँचा होता है। यह त्योहार प्रमुखता से भगवान जगन्नाथ, बालभद्र और सुभद्रा को समर्पित होता है और धार्मिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण होता है।
यहां जगन्नाथ यात्रा के कुछ महत्वपूर्ण कारण दिए जाते हैं:
भक्ति और आत्मीयता का प्रतीक: जगन्नाथ यात्रा में भक्तजन अपने श्रद्धा और आत्मीयता को प्रकट करते हैं। यह उनकी भक्ति और देवता के साथीकरण का प्रतीक है।
भगवान के साथ जीवन का जुड़ाव: यात्रा के दौरान जगन्नाथ, बालभद्र और सुभद्रा के रथ को खींचना और उन्हें अपने आस-पास लाने का महत्वपूर्ण संदेश है। इससे लोग मान्यता के अनुसार भगवान को अपने जीवन में साथ लाने का प्रयास करते हैं।
सामरिक और सामाजिक समरसता: यात्रा में लाखों लोगों की भागीदारी होती है और इसे सामाजिक एकता और समरसता की प्रतीक माना जाता है। इसमें विभिन्न समाज के लोग, जाति, वर्ण और धर्म के लोग साथ-साथ आते हैं और एकत्र होकर भक्ति और उत्साह का आनंद लेते हैं।
धार्मिक परंपरा और संस्कृति की प्रशंसा: जगन्नाथ यात्रा भारतीय धार्मिक परंपरा और संस्कृति की महत्वपूर्ण प्रतिष्ठा है। इसमें धार्मिक रस्मों, पूजा-अर्चना, भजन-कीर्तन, दीपावली, मेले, नाच-गान आदि का आयोजन होता है जो धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखते हैं।
जगन्नाथ यात्रा भारतीय धर्म, भक्ति, एकता, सामाजिक समरसता और संस्कृति के प्रतीक के रूप में महत्वपूर्ण है। यह भगवान जगन्नाथ के प्रति भक्तों की श्रद्धा और उनके साथीकरण की प्रक्रिया को प्रकट करता है।

14 दिनों तक बीमार रहते हैं भगवान जगन्नाथ
स्नान के कारण बीमार हुए भगवान जगन्नाथ, उनके भाई और बहन का 14 दिनों तक उपचार होता है. उनको कई प्रकार की जड़ी-बूटियां दी जाती हैं. मान्यताओं के अनुसार, जब पहली बार भगवान जगन्नाथ ज्येष्ठ पूर्णिमा को स्नान किए थे तो बीमार हो गए थे. तब उनका उपचार हुआ था और उन्होंने 15वें दिन दर्शन दिए थे. इसके बाद से हर साल ज्येष्ठ पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ स्नान करते हैं और 14 दिनों तक बीमार होते हैं. इतने दिन वे अनासरा घर में रहते हैं.
14 दिन तक नहीं होते दर्शन, मंदिर कपाट भी रहता है बंद भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा जी बीमार होने की वजह से 14 दिनों तक भक्तों को दर्शन नहीं देते हैं. स्नान से 14 दिनों तक मंदिर के कपाट भी बंद होते हैं. अंदर ही उनका उपचार होता है. आषाढ़ कृष्ण दशमी तिथि को मंदिर में चका बीजे नीति रस्म होती है, जो भगवान जगन्नाथ के सेहत में सुधार का प्रतीक है. इस साल चका बीजे नीति रस्म 13 जून को होगी.